सामने वाले को जो संतुष्टि मिलती है उसमें हमारी आत्म संतुष्टि है: संयुक्त कलेक्टर दीपक निकुंज
दुर्ग (अक्षित विजय)। मैं उन दिनों शिक्षाकर्मी था। उन्हीं दिनों पहली बार मेरे सहकर्मी शिक्षकों के माध्यम से सीजी पीएससी के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। यहां से सीजी पीएससी की तैयारी प्रारम्भ हुआ। खुद से नोट्स तैयार कर अध्ययन करता रहा। व्यापम की परीक्षाओं में शामिल होता रहा, शिक्षाकर्मी वर्ग 2, सहायक संपरीक्षक, सहायक विकास विस्तार अधिकारी, पटवारी, छात्रावास अधीक्षक, टीईटी इत्यादि परीक्षाओं में सिलेक्शन हुआ, ये सफलताएं मुझे सीजी पीएससी में आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा बना। नौकरी के साथ साथ पढ़ाई के लिए समय देना इतना आसान नहीं होता, सोचता था कि कोचिंग कर लूं पर मैं उसके लिए समय नहीं था। हजारों की संख्या में कोचिंग करने वालों से अपनी तुलना कर जरूर मन हताश होता था। परन्तु यदि समय सारिणी बनाकर और स्वयं का नोट्स बना कर ईमानदारी से तैयारी करें तो सफलता बिल्कुल सामने नजर आती है। इन्हीं के बदौलत सीजी पीएससी 2012 में सहायक संचालक ट्राइबल और डिप्टी कलेक्टर का सफर मुकम्मल हो पाया। यह सब बातें संयुक्त कलेक्टर (वर्तमान में सामान्य प्रशासन विभाग, मंत्रालय, नवा रायपुर में पदस्थ) दीपक निकुंज ने अक्षित विजय से विशेष बातचीत में कही। उन्होंने अपने अब तक का सफर हमसे साझा किया।
संयुक्त कलेक्टर दीपक निकुंज की प्रारंभिक शिक्षा कक्षा पहली से चौथी तक शासकीय प्राथमिक शाला, सुसडेगा (पत्थलगांव) जशपुर में हुआ था, कक्षा पांचवी से आठवीं तक की शिक्षा उन्होंने दीन पालिका मिशन स्कूल कांसाबेल, जिला जशपुर से पूरी की। उन्होंने हाई स्कूल की शिक्षा शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कांसाबेल, जिला जशपुर से पूरी की। 10वीं पास होने के बाद पीपीटी की परीक्षा उत्तीर्ण कर पॉलिटेक्निक कॉलेज रायगढ़ में प्रवेश लिया और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा प्राप्त किया। वर्ष 2005 से 2008 तक चार अलग अलग प्लांट में प्राइवेट नौकरी किया, इसी दौरान प्राइवेट छात्र के रूप में रायगढ़ से हायर सेकेंडरी की परीक्षा उत्तीर्ण की।
छत्तीसगढ़ व्यापम द्वारा पहली बार वर्ष 2008 में आयोजित शिक्षाकर्मी की परीक्षा में लगभग लाखों परीक्षार्थियों ने भाग लिया। शिक्षा कर्मी वर्ग तीन के लिए ब्लॉक मालखरौदा जिला सक्ती (उस समय जिला जांजगीर चांपा) से फॉर्म भर परीक्षा में भाग लिया और तीसरा स्थान हासिल किया और वर्ष 2008 से वर्ष 2012 तक शासकीय हायर सेकेंडरी स्कूल पिरदा (माल़खरौदा) में पदस्थ रहे।
अपने दो शिक्षाकर्मी साथी अमृतलाल चंद्रहास और अरुण दुबे का धन्यवाद किये, जिनके माध्यम से पहली बार सीजी पीएससी की जानकारी हुई, उनके साथ इन्होंने भी पीएससी का एग्जाम पहली बार वर्ष 2008 में दिया परंतु उनका चयन नहीं हुआ। वर्ष 2011 के पीएससी में इनका प्री निकला पर मेंस क्लियर नहीं हुआ। वर्ष 2012 में सीजी पीएससी ने पैटर्न बदला, गणित और विज्ञान विषय होने का उनके लिए अच्छा रहा और वर्ष 2012 में सहायक संचालक ट्राइबल के पद पर चयन होकर सहायक परियोजना प्रशासक कमार अभिकरण गरियाबंद में अपनी सेवाएं दीं। वर्ष 2013 में भी उन्होंने पीएससी की परीक्षा में भाग लिया साक्षात्कार भी दिए पर डिप्टी कलेक्टर में चयन नहीं हो सका और अपने तीसरे प्रयास में 2014 की परीक्षा में डिप्टी कलेक्टर में उनका चयन हुआ।
डिप्टी कलेक्टर के रूप में उनकी पहली पोस्टिंग वर्ष 2016 में बलरामपुर जिला में हुई, जहां उन्हें तहसीलदार और फिर जनपद पंचायत सीईओ कुसमी की जिम्मेदारी दी गई, वहां उन्होंने 2018 तक अपनी सेवाएं दी। कुसमी जनपद पंचायत सीईओ रहते हुए स्वच्छता के राज्यस्तरीय पुरस्कारर से पुरस्कृत किया गया।
वर्ष 2018 से 2019 तक उनकी पदस्थापना रायगढ़ जिला में हुई, जहां उन्हें सारंगढ़ एसडीएम और प्रभारी अधिकारी, कलेक्टर कार्यालय की जिम्मेदारी दी गई। वर्ष 2019 से मई 2023 तक बलरामपुर जिला में एसडीएम कुसमी और एसडीएम वाड्रफनगर के पद पर पदस्थ रहे। मई 2023 में इन्हें तत्कालीन वीवीआईपी जिला में पदस्थ किया गया, जहां उन्हें छावनी एसडीएम को जिम्मदारी दी गई। जुलाई 2024 तक उन्होंने एसडीएम पाटन के पद पर अपनी सेवाएं दी। वर्तमान में यह सामान्य प्रशासन विभाग, मंत्रालय, नवा रायपुर में पदस्थ है।
गीत- संगीत में विशेष रुचि रखने वाले संयुक्त कलेक्टर दीपक निकुंज ने बताया की अगर कोई प्रतिभागी टाइम टेबल बनाकर, खुद का नोट तैयार कर ईमानदारी से तैयारी करे तो सफलता स्वयं खिंची चली आएगी। स्वयं का नोट्स बनाना बहुत जरूरी है क्योंकि पुस्तकों के रचनाकार उनके लेखक होते हैं जबकि अपने नोट्स के रचनाकार आप स्वयं होते हैं और आपकी रचना आपकी समझ के आधार पर रचा गया होता है। जो प्रतिभागी कई प्रकाशकों की पुस्तकें पढ़ते हैं उन्हें नोट्स जरूर बनाना चाहिए।
मेरे माता पिता शिक्षक हैं और उनके प्रेरणा और आशीर्वाद से ही मुझे सफलता मिल पाई। आज इस पद पर पहुंचने के बाद लगता है कि हम किसी की समस्या सुन सकते हैं, जब किसी की समस्या का समाधान हो जाता है तो वह व्यक्ति सन्तुष्ट हो जाता है, तो मुझे भी आत्मसंतुष्टि होती है। शायद यही मेरी वास्तविक उपलब्धि है।