‘मन की बात’ कार्यक्रम के 111वें एपिसोड में पीएम मोदी ने कहा- हर कोई अपनी मां के लिए पेड़ लगा रहा है चाहे वो अमीर हो या गरीब
प्रधानमंत्री मोदी ने कार्यक्रम के 111वें संस्करण में कहा कि मैं आज देशवासियों को धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने हमारे संविधान और देश की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं पर अपना अटूट विश्वास दोहराया है। 24 का चुनाव, दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव था। दुनिया के किसी भी देश में इतना बड़ा चुनाव कभी नहीं हुआ, जिसमें, 65 करोड़ लोगों ने वोट डाले हैं। मैं चुनाव आयोग और मतदान की प्रक्रिया से जुड़े हर व्यक्ति को इसके लिए बधाई देता हूं…
नईदिल्ली (ए)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ रविवार 30 जून को फिर से शुरू हो गया। इस दौरान पीएम मोदी ने कई मुद्दों पर बात की। मन की बात के 111वें संस्करण में प्रधानमंत्री ने कहा कि आज वो दिन आ ही गया जिसका हम सभी फ़रवरी से इंतजार कर रहे थे। मैं ‘मन की बात’ के माध्यम से एक बार फिर आपके बीच, अपने परिवारजनों के बीच आया हूं। एक बड़ी प्यारी सी उक्ति है- ‘इति विदा पुनर्मिलनाय’ इसका अर्थ भी उतना ही प्यारा है, मैं विदा लेता हूं, फिर मिलने के लिए। इसी भाव से मैंने फरवरी में आपसे कहा था कि चुनाव नतीजों के बाद फिर मिलूंगा और आज, ‘मन की बात’ के साथ, मैं, आपके बीच फिर हाजिर हूं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि मन की बात’ रेडियो प्रोग्राम भले ही कुछ महीने बंद रहा हो, लेकिन ‘मन की बात’ का जो आत्मा है देश में, समाज में, हर दिन अच्छे काम, निस्वार्थ भावना से किए गए काम, समाज पर सकारात्मक असर डालने वाले काम निरंतर चलते रहे। चुनाव की खबरों के बीच निश्चित रूप से मन को छू जाने वाली ऐसी खबरों पर आपका ध्यान गया होगा।
उन्होंने कहा कि मैं आज देशवासियों को धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने हमारे संविधान और देश की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं पर अपना अटूट विश्वास दोहराया है। 24 का चुनाव, दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव था। दुनिया के किसी भी देश में इतना बड़ा चुनाव कभी नहीं हुआ, जिसमें, 65 करोड़ लोगों ने वोट डाले हैं। मैं चुनाव आयोग और मतदान की प्रक्रिया से जुड़े हर व्यक्ति को इसके लिए बधाई देता हूं।
उन्होंने कहा कि आज 30 जून का ये दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस दिन को हमारे आदिवासी भाई-बहन ‘हूल दिवस’ के रूप में मनाते हैं। यह दिन वीर सिद्धो-कान्हू के अदम्य साहस से जुड़ा है, जिन्होंने विदेशी शासकों के अत्याचार का पुरजोर विरोध किया था। वीर सिद्धो-कान्हू ने हजारों संथाली साथियों को एकजुट करके अंग्रेजों का जी-जान से मुकाबला किया, और जानते हैं ये कब हुआ था ? ये हुआ था 1855 में, यानी ये 1857 में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से भी दो साल पहले हुआ था, तब, झारखंड के संथाल परगना में हमारे आदिवासी भाई-बहनों ने विदेशी शासकों के खिलाफ हथियार उठा लिया था।
पीएम मोदी ने कहा कि मैं आपसे पूछें कि दुनिया का सबसे अनमोल रिश्ता कौन सा होता है तो आप जरूर कहेंगे- ‘मां’। हम सबके जीवन में ‘मां’ का दर्जा सबसे ऊंचा होता है। मां, हर दुख सहकर भी अपने बच्चे का पालन-पोषण करती है। हर मां, अपने बच्चे पर हर स्नेह लुटाती है। जन्मदात्री मां का ये प्यार हम सब पर एक कर्ज की तरह होता है, जिसे कोई चुका नहीं सकता।
उन्होंने कहा कि हम मां को कुछ दे तो सकते नहीं, लेकिन, और कुछ कर सकते हैं क्या? इसी सोच में से इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस पर एक विशेष अभियान शुरू किया गया है, इस अभियान का नाम है- ‘एक पेड़ मां के नाम’। मैंने भी एक पेड़ अपनी मां के नाम लगाया है। मैंने सभी देशवासियों से, दुनिया के सभी देशों के लोगों से ये अपील की है कि अपनी मां के साथ मिलकर, या उनके नाम पर, एक पेड़ जरूर लगाएं और मुझे ये देखकर बहुत खुशी है कि मां की स्मृति में या उनके सम्मान में पेड़ लगाने का अभियान तेजी से आगे बढ़ रहा है।
पीएम मोदी ने कहा कि हर कोई अपनी मां के लिए पेड़ लगा रहा है- चाहे वो अमीर हो या गरीब, चाहे वो कामकाजी महिला हो या गृहिणी। इस अभियान ने सबको मां के प्रति अपना स्नेह जताने का समान अवसर दिया है। वो अपनी तस्वीरों को #Plant4Mother और #एक_पेड़_मां_के_नाम इसके साथ साझा करके दूसरों को प्रेरित कर रहे हैं।
पीएम मोदी ने कहा कि ‘मन की बात’ में आज मैं आपको एक खास तरह के छातों के बारे में बताना चाहता हूं। ये छाते तैयार होते हैं हमारे केरला में। वैसे तो केरला की संस्कृति में छातों का विशेष महत्व है। छाते, वहां कई परंपराओं और विधि-विधान का अहम हिस्सा होते हैं, लेकिन मैं जिस छाते की बात कर रहा हूं, वो हैं ‘कार्थम्बी छाते’ और इन्हें तैयार किया जाता है केरला के अट्टापडी में।
उन्होंने कहा कि ये रंग-बिरंगे छाते बहुत शानदार होते हैं। और खासियत ये इन छातों को केरला की हमारी आदिवासी बहनें तैयार करती हैं। आज देशभर में इन छातों की मांग बढ़ रही हैं। इनकी ऑनलाइन बिक्री भी हो रही है। इन छातों को ‘वट्टालक्की सहकारी कृषि सोसाइटी’ की देखरेख में बनाया जाता है। इस सोसाइटी का नेतृत्व हमारी नारीशक्ति के पास है।
पीएम मोदी ने कहा कि अगले महीने इस समय तक पेरिस ओलंपिक शुरू हो चुके होंगे। मुझे विश्वास है कि आप सब भी ओलंपिक खेलों में भारतीय खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाने का इंतजार कर रहे होंगे। मैं भारतीय दल को ओलंपिक खेलों की बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। हम सबके मन में टोक्यो ओलंपिक की यादें अब भी ताजा हैं।
उन्होंने कहा कि टोक्यो में हमारे खिलाड़ियों के प्रदर्शन ने हर भारतीय का दिल जीत लिया था।उसके बाद से ही हमारे एथलीट पेरिस ओलंपिक की तैयारियों में जी-जान से जुटे हुए थे। सभी खिलाड़ियों को मिला दें, तो इन सबने करीब 900 अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया है। पेरिस ओलंपिक में आपको कुछ चीजें पहली बार देखने को मिलेंगी। शूटिंग में हमारे खिलाड़ियों की प्रतिभा निखरकर सामने आ रही है। टेबल टेनिस में पुरुषऔर महिला दोनों टीमें क्वालिफाई कर चुकी हैं। भारतीय शॉटगन टीम में हमारी शूटर बेटियां भी शामिल हैं। इस बार कुश्ती और घुड़सवारी में हमारे दल के खिलाड़ी उन श्रेणी में भी भाग लेंगे, जिनमें पहले वे कभी शामिल नहीं रहे।
विदेशों में भारत की धाक के उदाहरण गिनाए
- पीएम मोदी ने कहा कि तुर्कमेनिस्तान में इस साल मई में वहां के राष्ट्रीय कवि की 300वीं जन्म-जयंती मनाई गई। इस अवसर पर तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति ने दुनिया के 24 प्रसिद्ध कवियों की प्रतिमाओं का अनावरण किया। इनमें से एक प्रतिमा गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जी की भी है। ये गुरुदेव का सम्मान है, भारत का सम्मान है।
- उन्होंने कहा कि जून के महीने में दो कैरेबियाई देश सूरीनाम तथा सेंट विंसेंट और द ग्रेनेडाइंस ने अपनी भारतीय विरासत को पूरे जोश और उत्साह के साथ मनाया। सूरीनाम में हिन्दुस्तानी समुदाय हर साल 5 जून को भारतीय आगमन दिवस और प्रवासी दिन के रूप में मनाता है। यहां तो हिंदी के साथ ही भोजपुरी भी खूब बोली जाती है।
- सेंट विंसेंट और द ग्रेनेडाइंस में रहने वाले हमारे भारतीय मूल के भाई-बहनों की संख्या भी करीब छह हजार है। उन सबको अपनी विरासत पर बहुत गर्व है। एक जून को इन सबने भारतीय आगमन दिवस को जिस धूम-धाम से मनाया, उससे उनकी ये भावना साफ झलकती है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस महीने पूरी दुनिया ने 10वें योग दिवस को भरपूर उत्साह और उमंग के साथ मनाया है। मैं भी जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में आयोजित योग कार्यक्रम में शामिल हुआ था। कश्मीर में युवाओं के साथ-साथ बहनों-बेटियों ने भी योग दिवस में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। जैसे-जैसे योग दिवस का आयोजन आगे बढ़ रहा है, नए-नए रिकॉर्ड बन रहे हैं।
अराकु कॉफी की जमकर तारीफ की
उन्होंने कहा कि अराकु कॉफी की खेती से करीब डेढ़ लाख आदिवासी परिवार जुड़े हुए हैं। अराकु कॉफी को नई ऊंचाई देने में गिरिजन को-ऑपरेटिव की बहुत बड़ी भूमिका रही है। इसने यहां के किसान भाई बहनों को एक साथ लाने का काम किया और उन्हें अराकु कॉफी की खेती के लिए प्रोत्साहन दिया। इससे इन किसानों की कमाई भी बहुत बढ़ गई है।
उन्होंने कहा कि मुझे याद है एक बार विशाखापत्नम में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू गारु के साथ मुझे इस कॉफी का स्वाद लेने का मौका मिला था। इसके स्वाद की तो पूछिए ही मत! कमाल की होती है ये कॉफी! अराकु कॉफी को कई ग्लोबल अवॉर्ड्स मिले हैं। दिल्ली में हुई G-20 समिट में भी यह कॉफी छाई हुई थी।
जम्मू-कश्मीर के इस उत्पाद के बारे में बताया
उन्होंने कहा कि स्थानीय उत्पादों को वैश्विक बनाने में हमारे जम्मू-कश्मीर के लोग भी पीछे नहीं हैं। पिछले महीने जम्मू-कश्मीर ने जो कर दिखाया है, वो देशभर के लोगों के लिए भी एक मिसाल है। यहां के पुलवामा से स्नो पीस (snow peas) की पहली खेप लंदन भेजी गई। कुछ लोगों को ये विचार सूझा कि कश्मीर में उगने वाली एग्जॉटिक सब्जी को क्यूं न दुनिया के नक्शे पर लाया जाए। बस फिर क्या था… चकूरा गावं के अब्दुल राशीद मीर जी इसके लिए सबसे पहले आगे आए। उन्होंने गांव के अन्य किसानों की जमीन को एक साथ मिलाकर बर्फीली जगह होने वाली मटर को उगाने का काम शुरू किया और देखते ही देखते snow peas कश्मीर से लंदन तक पहुंचने लगी।
पीएम मोदी ने कहा कि आज संस्कृत से जुड़ा एक खास अवसर ! आज 30 जून को आकाशवाणी का संस्कृत बुलेटिन अपने प्रसारण के 50 साल पूरे कर रहा है। 50 वर्षों से लगातार इस बुलेटिन ने कितने ही लोगों को संस्कृत से जोड़े रखा है। मैं ऑल इंडिया रेडियो परिवार को बधाई देता हूं।
संस्कृत वीकेंड से लोगों को अवगत कराया
उन्होंने कहा कि बंगलूरू में एक पार्क है- कब्बन पार्क ! इस पार्क में यहां के लोगों ने एक नई परंपरा शुरू की है। यहां हफ्ते में एक दिन, हर रविवार बच्चे, युवा और बुजुर्ग आपस में संस्कृत में बात करते हैं। इतना ही नहीं, यहां वाद – विवाद के कई सत्र भी संस्कृत में ही आयोजित किए जाते हैं। इनकी इस पहल का नाम है – संस्कृत वीकेंड! इसकी शुरुआत एक वेबसाइट के जरिए समष्टि गुब्बी जी ने की है। कुछ दिनों पहले ही शुरू हुआ ये प्रयास बंगलूरूवासियों के बीच देखते ही देखते काफी लोकप्रिय हो गया है। अगर हम सब इस तरह के प्रयास से जुड़ें तो हमें विश्व की इतनी प्राचीन और वैज्ञानिक भाषा से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।