जितने भी एडवोकेट हैं वह हिंदी में भी बेहतर तरीके से अदालत के सामने अपना पक्ष रख सकते हैं: सीजेआई डीवाय चंद्रचूड़

चीफ जस्टिस आफ इंडिया डी वाय चंद्रचूड़ इस समय यूपी दौरे पर हैं. लखनऊ के राम मनोहर लोहिया लॉ कॉलेज के दीक्षांत समारोह में उन्होंने हिंदी भाषा को लेकर बड़ी बात कह दी है…

 

लखनऊ (ए)। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी वाय चंद्रचूड़ इस समय यूपी दौरे पर हैं. लखनऊ के राम मनोहर लोहिया लॉ कॉलेज के दीक्षांत समारोह में अतिथि बनकर पहुंचे. कॉलेज के इस समारोह में उन्होंने बड़ी बात कह दी. अनुभव साझा करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि लॉ की पढ़ाई हिंदी में भी होनी चाहिए. यहां उनके साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मौजूद थे।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि जितने भी एडवोकेट हैं वह हिंदी में भी बेहतर तरीके से अदालत के सामने अपना पक्ष रख सकते हैं. जज और वकील तो अंग्रेजी को समझ सकते हैं, लेकिन आम आदमी को इसे समझने में तकलीफ होती है. उन्होंने कहा कि अंग्रेजी के साथ-साथ स्थानीय भाषाओं में भी फैसला होने चाहिए।

यूपी तक की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जब मैं मुंबई हाई कोर्ट के जज के तौर पर मुंबई में अपना जीवन बिताने के बाद इलाहाबाद आया तो मेरे लिए यह तो मेरे लिए यह सांस्कृतिक रूप से अलग था. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि बॉम्बे हाई कोर्ट में कामकाज अंग्रेजी में होता था. हालांकि, रिकॉर्ड… खासकर आपराधिक मामलों में मराठी में होता था. मैंने देखा इलाहाबाद हाई कोर्ट के सामने स्थानीय वकील अक्सर केस हिंदी में पेश करना शुरू कर देते थे. इसके बाद मुझे एहसास हुआ कि वकीलों को अपनी स्थानीय भाषा में भी कुशलता पूर्वक पेश करने की क्षमता होती है।

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश आकर मुझे इस बात का एहसास हुआ कि लोगों के लिए उनकी जमीन कितनी महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि कानूनी भाषा में ताल और तलैया का क्या फर्क है मैंने देख लिया. इसलिए कानून को जनता को किसी भी कठिन भाषा को सरल तरीके से बताना आना चाहिए. इसलिए हमें कानून शिक्षा को लेकर एक बार फिर से पुनर्विचार करना होगा. इससे हम तकनीक का भी सहारा ले सकते हैं और विश्वविद्यालय में आपसी समन्वयक की भी अपेक्षा कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि टीचिंग मॉड्यूल को सरल और स्थानीय भाषा में तैयार किया जा सकता है. हम छात्रों और आम जनता को वीडियो के माध्यम से भी समझ सकते हैं।

उन्होंने कहा कि मैं यह नहीं कह रहा हूं कि कानूनी शिक्षा से इंग्लिश को हटा देना चाहिए बल्कि अंग्रेजी के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं को भी अपनाना चाहिए।

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